जलवायु परिवर्तन क्यों मायने रखता है?
मौसम
जैसे ही धरती गर्म होती है, यह हवा और समुद्र के स्वरूप को बदल देती है। यह उस मौसम को बिगाड़ देता है जिसे हमने पिछले 6000 सालों से खेतों और शहरों के आस-पास बनाया है। हर जगह बारिश या तापमान में कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है। कई जगहों पर ये बदलाव अपने चरम पर हैं।
- तूफ़ान और बाढ़: एक गर्म समंदर में ज़्यादा वाष्पीकरण होता है, इसका मतलब यह हुआ कि ज़मीन पर बारिश बनकर गिरने से पहले बादल ज़्यादा पानी अवशोषित करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि उन जगहों पर जहां पहले से ही चक्रवात, आंधी और तूफ़ान आते रहे हैं, वहां अधिक से अधिक बड़े तूफानों का अनुभव हो रहा है। ठंडे प्रदेशों में बर्फ़ पिघलने से भी बाढ़ आ सकती है।
- सूखा: अगर एक जगह बारिश हो रही है और दूसरे जगह नहीं हो रही है तो वहां सूखा पड़ता है। बारिश के स्वरूप में बदलाव के साथ ही कई जगहों पर भयंकर सूखा पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, मॉनसून में बदलाव की वजह से एशिया में बाढ़ और ऑस्ट्रेलिया में सूखा पड़ सकता है।
- आग:ज़्यादा वाष्पीकरण और कम बारिश से पेड़-पौधे सूख जाते हैं। सूखे पेड़-पौधे और उच्च तापमान की वजह से आग आसानी से फैलती है। ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में दर्जनों लोगों की मौत हो गई, हज़ारों लोगों का घर छिन गया, और लाखों एकड़ फ़सल बर्बाद हो गई। आग इसलिए भी नुक़सानदेह है क्योंकि ये वातावरण में ज़्यादा कार्बन छोड़ती हैं।
भोजन
बहुत ज़्यादा बारिश फ़सलों को डुबो देती है, और बहुत कम बारिश से फ़सलें सूख जाती हैं। ज़्यादा गर्मी कीड़े और बीमारियों को जन्म देती है जो कि फ़सलों और मवेशियों को नष्ट कर देते हैं। इन सबका एक ही नतीजा है और वो है भुखमरी।
समुद्र का स्तर
जैसे ही ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका पर बर्फ की टोपियां पिघलती हैं, समुद्र का स्तर बढ़ जाता है। पानी जब गर्म होता है तब फैलता है, इसलिए पानी का बढ़ता स्तर भी विशाल समंदर की वजह से होता है। प्रशांत द्वीपों और बांग्लादेश जैसे देश विशेष तौर पर ख़तरे में हैं। गर्म समंदर अपने अंदर घुले कार्बन को संग्रहित नहीं कर सकता है (जब आप पानी उबालते हैं तब उसमें बनने वाले बुलबुले के बारे में सोचें), इसलिए जब यह ज़्यादा गर्म होता है तब ज़्यादा कार्बन उत्सर्जित करता है जिसकी वजह से जलवायु परिवर्तन और भी तेज़ हो जाता है।
स्वास्थ्य
तापमान बढ़ते ही मच्छर जैसे गर्मी पसंद कीड़े तेज़ी से पनपने लगते हैं, जिससे मलेरिया, डेंगू और ज़ीका जैसी बीमारियां अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचती हैं। जलवायु परिवर्तन लू लगने से होने वाली मौतों का कारण भी बनता है। जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाले जीवाश्म ईंधन और जंगल की आग, वायु प्रदूषण भी बढ़ाती हैं जो कैंसर, दिल की बीमारी, सांस की बीमारी, मस्तिष्क का कम विकास और समय से पहले जन्म जैसी परेशानियों का कारण बनता है।
संघर्ष और पलायन
जैसे-जैसे ये सारी समस्याएं बद से बदतर होती जाती हैं, लोग सुरक्षा की तलाश में पलायन को मजबूर हो जाते हैं। समुद्र का स्तर बढ़ने की वजह से प्रशांत द्वीपों में रहने वाले कुछ लोगों ने पहले ही अपना घर छोड़ दिया है, जबकि दक्षिण अमेरिका से लेकर भारत और सूडान तक हर जगह बाढ़ और सूखे की वजह से पलायन हो रहा है। ऐसी आशंका है कि दुर्लभ संसाधनों पर प्रतिस्पर्धा (ख़ास कर ज़्यादा पलायन के साथ) नए टकरावों का कारण बनेगी और पुराने संघर्ष एक बार फिर से उभर कर सामने आएंगे।
जैव विविधता
बाढ़ और आग की तरह ही इंसान और मौसम भी जानवरों और पौधों के आसरे को उजाड़ सकते हैं। कुछ जानवरों को अपने बच्चों को खिलाने या प्रजनन के लिए ठंड की ज़रूरत होती है, जबकि दूसरे गर्मी में मर जाते हैं। उदाहरण के लिए, जैसे ही समुद्र गर्म होता है वैसे ही प्रवाल/मूंगा मरने लगते हैं। प्रवाल (कोरल ) समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) की रीढ़ है। पिछले 50 वर्षों में 60 फ़ीसदी से ज़्यादा जानवरों का इंसानों द्वारा सफ़ाया कर दिया गया है।
जानवरों और पौधों की कम से कम दस लाख प्रजातियों के विल्पुत होने का ख़तरा है। यह न सिर्फ़ उनके लिए बुरा है, बल्कि लोगों के लिए भी बुरा है, क्योंकि हम पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करते हैं। कीड़े-मकोड़े हमारी फ़सलों पर पराग छोड़ते हैं, लाखों लोग भोजन के लिए मछली पर निर्भर होते हैं, कई पौधे और जानवर दवा के काम आते हैं, और हम सब पौधों और शैवाल से ऑक्सीजन लेते हैं।