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बेहतर खाद्य तंत्र

स्थायी/टिकाऊ खेती

कार्बन प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत खेती है। फ़िलहाल, घने जंगलों जैसे प्राकृतिक आसरों का सफ़ाया किया जा रहा है जो कि खेतों की तुलना में ज़्यादा कार्बन 'फिक्स' करते हैं, और खेतों की मिट्टी भी कार्बन उत्सर्जित करती है क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए कम हितकर होता है। लेकिन खेती के आधुनिक और टिकाऊ तरीक़े हमें कम जगह में अधिक फ़सलों की खेती करने में मदद कर सकते हैं, ताक़ि हम पुराने खेतों को वापस जंगल में तब्दील कर सकें। स्थायी खेती में पानी का इस्तेमाल भी कम होता है, और कम या बेहतर कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से जैव विविधता की रक्षा में मदद होती है।

कम मांसाहार

हम मांस भी कम खा सकते हैं। ऐसा न सिर्फ़ इसलिए क्योंकि जानवरों को फ़सलों की अपेक्षा अधिक ज़मीन और पानी की ज़रूरत होती है, बल्कि इसलिए भी कि जानवरों की डकार और पाद से शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन निकलती है। गायों की इसमें सबसे बड़ी भूमिका होती है, इसका अर्थ ये हुआ कि अपने आहार से गोमांस/बीफ़ और डेयरी या दूध के उत्पाद को हटा देने से आपके भोजन के कार्बन फुटप्रिंट को आधा किया जा सकता है। हमलोग दुनियाभर में विकसित किए जा रहे मांस और डेयरी उत्पाद के विकल्पों को ज़्यादा खा सकते हैं। क्या वास्तव में आप बुद्धिमान दिखना चाहते हैं? मीथेन पैदा करने वाले जानवरों के लिए उचित नाम है 'आंतरिक किण्वन (पाचन की प्रक्रिया)'।

भोजन की कम बर्बादी

हम जो खाना बर्बाद करते हैं, वो भी एक बड़ी समस्या है। ऐसा ज़्यादातर खाने वाले लोगों तक खाना पहुंचने से पहले होता है, खेत में, परिवहन के दौरान, या दुकानों पर अनाज की ख़ूब बर्बादी होती है। ये बाद में भी होता है जब लोग खाना फेंकते हैं। खाना सड़ने से मीथेन निकलता है, चाहे वो खेत में हो या कूड़े के ढेर में। हम जो खाना नहीं खाते हैं, उसका मतलब ये भी हुआ कि खाना बनाने में जो कार्बन लगा, वो 'बेकार' गया। सरकारें किसानों को आगे बढ़ने के लिए जो भुगतान करती हैं (जिसे सब्सिडी कहा जाता है) उसमें सुधार कर, साथ ही साथ जिस तरीक़े से हम फ़सल उगाते हैं, एक-जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं, ख़रीदते हैं, और संग्रह करते हैं उसमें सुधार कर हम बहुत हद तक बर्बादी रोक सकते हैं।

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